बुधवार, 11 अगस्त 2021

नीरज चोपड़ा ने गर्लफ्रेंड और शादी के सवाल पर दिया ये जवाब

नीरज चोपड़ा ने गर्लफ्रेंड और शादी के सवाल पर दिया ये जवाबनीरज चोपड़ा की उम्र 23 साल है और फिलहाल उन्हें सबसे एलिजबल बैचलर बताया जा रहा है. गूगल पर भी लोग उनकी गर्लफ्रेंड का नाम खोज रहे हैं.नीरज से जब एक इंटरव्यू में शादी को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'अभी मेरा पूरा फोकस सिर्फ और सिर्फ स्पोर्ट्स की तरफ है. आने वाला साल मेरे लिए बेहद अहम है क्योंकि एशियन गेम्स और वर्ल्ड चैंपियनशिप्स हैं. उसके बाद ओलंपिक तक पहुंचने के लिए कई सारे टूर्नामेंट हैं.' फीमेल फैंस से मिल रही अटेंशन को लेकर नीरज ने कहा, मैं खुश हूं कि मुझे सबसे इतना प्यार मिल रहा है. क्या उन पर शादी को लेकर दबाव है?' इस सवाल के जवाब में नीरज ने कहा, 'नहीं, फिलहाल तो मेरा पूरा फोकस खेल की तरफ है. ये सब चीजें तो चलती रहेंगी. लेकिन अभी मैं सिर्फ अपने खेल पर ही ध्यान देना चाहता हूं.' नीरज से जब पूछा गया कि क्या उनकी कोई गर्लफ्रेंड है तो उन्होंने कहा, फिलहाल कोई नहीं है. लव या अरेंज मैरिज करने के सवाल पर नीरज ने कहा कि घर वाले अपनी मर्जी से शादी करना चाहे तो भी कोई दिक्कत नहीं है और अगर मुझे लव मैरिज करनी होगी तो भी कोई दिक्कत नहीं है. नीरज ने बताया कि अगर उनको कोई लड़की पसंद आई तो वह अपने घर वालों से बात करेंगे और शादी करेंगे. हालांकि, अभी वह अपने खेल पर ही ध्यान लगाना चाहते हैं.नीरज चोपड़ा ने बताया कि बचपन में उनका वजन काफी ज्यादा था और वह बहुत मोटे थे. इसलिए उनके परिवार ने उन्हें फिट होने के लिए एथलेटिक्स की ट्रेनिंग लेने भेज दिया था. नीरज ने बताया कि उन्हें कभी इस बात का अंदाजा नहीं था कि एक दिन वह जेवलिन थ्रो के चैंपियन बन जाएंगेनीरज ने बताया कि बचपन में जब वह कुर्ता-पयजामा पहनकर घर से बाहर निकलते थे तो लोग उन्हें सरपंच कहने लग जाते थे. मोटे होने की वजह से नीरज की फिटनेस बहुत ज्यादा खराब थी. बच्चे उनका बहुत मजाक भी बनाते थे.नीरज ने कहा, 'जब मुझे पहली बार स्टेडियम भेजा तब यह खेल मेरे प्लान का हिस्सा नहीं था. ना ही मुझे पता था कि एक दिन मैं देश को मेडल दिलाने के लिए खेलूंगा. मेरे परिवार या गांव से कोई शख्स पहले इस खेल से जुड़ा नहीं रहा है. हालांकि इसके लिए मुझे हर किसी ने सपोर्ट किया था.' Photo Credit: Neeraj chopra 'क्या नीरज चोपड़ा पर है शादी का प्रेशर' 9/10 नीरज ने बताया कि उनके चाचाजी सुरेंद्र कुमार उनका वजन कम करने के लिए स्टेडियम लेकर गए थे, लेकिन धीरे-धीरे उनका रुझान जेवलिन थ्रो की तरफ बढ़ने लगा और उन्होंने इस खेल में हाथ आजमाना शुरू कर दिया. Photo Credit: Neeraj chopra 'क्या नीरज चोपड़ा पर है शादी का प्रेशर' 10/10 टोक्यो ओलंपिक में नीरज चोपड़ा ने 87.58 मीटर का थ्रो करके गोल्ड मेडल अपने नाम किया है. इससे पहले भी नीरज कॉमनवेल्थ सहित कई बड़े ईवेंट्स में गोल्ड मेडल जीत चुके नीरज चोपड़ा ने बताया कि बचपन में उनका वजन काफी ज्यादा था और वह बहुत मोटे थे. इसलिए उनके परिवार ने उन्हें फिट होने के लिए एथलेटिक्स की ट्रेनिंग लेने भेज दिया था. नीरज ने बताया कि उन्हें कभी इस बात का अंदाजा नहीं था कि एक दिन वह जेवलिन थ्रो के चैंपियन बन जाएंगेनीरज चोपड़ा की उम्र 23 साल है और फिलहाल उन्हें सबसे एलिजबल बैचलर बताया जा रहा है. गूगल पर भी लोग उनकी गर्लफ्रेंड का नाम खोज रहे हैं.नीरज ने बताया कि बचपन में जब वह कुर्ता-पयजामा पहनकर घर से बाहर निकलते थे तो लोग उन्हें सरपंच कहने लग जाते थे. मोटे होने की वजह से नीरज की फिटनेस बहुत ज्यादा खराब थी. बच्चे उनका बहुत मजाक भी बनाते थे. by-sanwlaram

हॉकी नहीं है भारत का राष्ट्रीय खेल… सरकार भी बता चुकी है, तो फिर क्यों गलतफहमी में रहते हैं ज्यादातर

livetvtv9 logo news हिन्दी TOP 9 लेटेस्टक्रिकेटहेल्थपॉडकास्टदेशराज्यमनोरंजनबिजनेसदुनियानॉलेजऑटोटेकट्रेंडिंगफोटोलाइफस्‍टाइलधर्मकरियरकृषि TRENDING #IPO ट्रैकर#क्रिप्टो ट्रैकर#AzadiKaAmritMahotsav#कोरोना अपडेट#कोरोना वैक्सीन#काम की बात#पेट्रोल-डीजल भाव#सोना-चांदी के दाम#आपकी राशि Hindi News » Photo gallery » Knowledge photos » Why Hockey is not national game of India do So many People do not know facts about national Games and Hockey हॉकी नहीं है भारत का राष्ट्रीय खेल… सरकार भी बता चुकी है, तो फिर क्यों गलतफहमी में रहते हैं ज्यादातर लोग? भारत ने वर्ष 1928 से 1956 तक ओलंपिक में लगातार 6 बार स्वर्ण पदक जीते हैं. हॉकी के जादूगर के रूप में मेजर ध्यान चंद का लोहा तो पूरी दुनिया ने माना है. author TV9 Hindi Updated On - 12:16 pm, Mon, 9 August 21 Edited By: निलेश कुमार 1/5 ओलिंपिक गेम्स (Tokyo Olympics Games) खत्म हो चुके हैं. जापान के टोक्यों में हुए इस आयोजन में इस बार भारत का प्रदर्शन पहले के मुकाबले काफी बेहतर रहा. इस साल भारतीय खिलाड़ियों ने 1 गोल्ड, 2 सिल्वर समेत कुल 7 मेडल अपने नाम किया. वहीं हॉकी में भी पुरुष टीम ने ब्रॉन्च मेडल जीता. महिला टीम भले ही मेडल से चूक गई, लेकिन उन्होंने भी बेहद शानदार खेल का प्रदर्शन किया. बहरहाल इस बीच सोशल मीडिया पर प्रशंसा और आलोचना से भरे तमाम सारे पोस्ट नजर आए. सैकड़ों ऐसे पोस्ट थे, जिनमें हॉकी को भारत का राष्ट्रीय खेल बताया गया. लेकिन क्या हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है? ओलिंपिक गेम्स (Tokyo Olympics Games) खत्म हो चुके हैं. जापान के टोक्यों में हुए इस आयोजन में इस बार भारत का प्रदर्शन पहले के मुकाबले काफी बेहतर रहा. इस साल भारतीय खिलाड़ियों ने 1 गोल्ड, 2 सिल्वर समेत कुल 7 मेडल अपने नाम किया. वहीं हॉकी में भी पुरुष टीम ने ब्रॉन्च मेडल जीता. महिला टीम भले ही मेडल से चूक गई, लेकिन उन्होंने भी बेहद शानदार खेल का प्रदर्शन किया. बहरहाल इस बीच सोशल मीडिया पर प्रशंसा और आलोचना से भरे तमाम सारे पोस्ट नजर आए. सैकड़ों ऐसे पोस्ट थे, जिनमें हॉकी को भारत का राष्ट्रीय खेल बताया गया. लेकिन क्या हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है? Subscribe to Notifications 2/5 जैसे हमारा राष्ट्रगान जन-गण-मन है, हमारा राष्ट्रीय झंडा तिरंगा है, राष्‍ट्रीय चिह्न या प्रतीक अशोक स्तंभ है... उसी तरह कई देशों के हैं. कई देशों के अपने राष्ट्रीय खेल भी हैं, जैसे ब्रिटेन का राष्ट्रीय खेल क्रिकेट है, अमेरिका का राष्ट्रीय खेल बेसबॉल है, ब्राजील और फ्रांस का राष्‍ट्रीय खेल फुटबॉल है... वैसे ही हमारा राष्ट्रीय खेल कौन सा है? आपके मन में फिर से हॉकी का नाम तो नहीं आ रहा? अगर ऐसा है तो हम क्लियर कर दें कि हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल नहीं है. जैसे हमारा राष्ट्रगान जन-गण-मन है, हमारा राष्ट्रीय झंडा तिरंगा है, राष्‍ट्रीय चिह्न या प्रतीक अशोक स्तंभ है... उसी तरह कई देशों के हैं. कई देशों के अपने राष्ट्रीय खेल भी हैं, जैसे ब्रिटेन का राष्ट्रीय खेल क्रिकेट है, अमेरिका का राष्ट्रीय खेल बेसबॉल है, ब्राजील और फ्रांस का राष्‍ट्रीय खेल फुटबॉल है... वैसे ही हमारा राष्ट्रीय खेल कौन सा है? आपके मन में फिर से हॉकी का नाम तो नहीं आ रहा? अगर ऐसा है तो हम क्लियर कर दें कि हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल नहीं है. 3/5 दरअसल, भारत के राष्ट्रीय खेल को लेकर कई बार सवाल उठ चुके हैं, लेकिन सरकार भी बता चुकी है कि भारत का कोई राष्ट्रीय खेल है ही नहीं. इसी साल मार्च में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के एक लॉ स्टूडेंट ने RTI के माध्यम से खेल मंत्रालय से जवाब मांगा था कि 'भारत सरकार ने किस खेल को राष्ट्रीय खेल के रूप में मान्यता दी है? इस सवाल के जवाब में खेल मंत्रालय ने बताया कि भारत ने किसी भी खेल को राष्ट्रीय खेल के रूप में मान्यता नहीं दी है. जवाब में यह भी लिखा कि सभी खेलों को प्रोत्साहित करना देश का उद्देश्य है. दरअसल, भारत के राष्ट्रीय खेल को लेकर कई बार सवाल उठ चुके हैं, लेकिन सरकार भी बता चुकी है कि भारत का कोई राष्ट्रीय खेल है ही नहीं. इसी साल मार्च में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के एक लॉ स्टूडेंट ने RTI के माध्यम से खेल मंत्रालय से जवाब मांगा था कि 'भारत सरकार ने किस खेल को राष्ट्रीय खेल के रूप में मान्यता दी है? इस सवाल के जवाब में खेल मंत्रालय ने बताया कि भारत ने किसी भी खेल को राष्ट्रीय खेल के रूप में मान्यता नहीं दी है. जवाब में यह भी लिखा कि सभी खेलों को प्रोत्साहित करना देश का उद्देश्य है. 4/5 गोरखपुर निवासी लॉ स्टूडेंट शिवम कुमार गुप्ता के RTI का जवाब देते हुए खेल मंत्रालय ने एक लेटर जारी कर बताया कि भारत सरकार ने किसी भी खेल को राष्ट्रीय खेल के रूप में घोषित नहीं किया है. क्योंकि सरकार का उद्देश्य सभी लोकप्रिय खेलों को प्रोत्साहित करना है. काफी साल पहले ऐश्वर्य पराशर ने भी आरटीआई के माध्यम से यही सवाल पूछा था, तब जवाब मिला था कि हॉकी सामान्य खेलों में एक राष्ट्रीय खेल के रूप में जाना जाता है. हॉकी को प्राथमिकता दी गई है लेकिन यह राष्ट्रीय खेल नहीं है. गोरखपुर निवासी लॉ स्टूडेंट शिवम कुमार गुप्ता के RTI का जवाब देते हुए खेल मंत्रालय ने एक लेटर जारी कर बताया कि भारत सरकार ने किसी भी खेल को राष्ट्रीय खेल के रूप में घोषित नहीं किया है. क्योंकि सरकार का उद्देश्य सभी लोकप्रिय खेलों को प्रोत्साहित करना है. काफी साल पहले ऐश्वर्य पराशर ने भी आरटीआई के माध्यम से यही सवाल पूछा था, तब जवाब मिला था कि हॉकी सामान्य खेलों में एक राष्ट्रीय खेल के रूप में जाना जाता है. हॉकी को प्राथमिकता दी गई है लेकिन यह राष्ट्रीय खेल नहीं है. 5/5 बता दें कि हॉकी भारत में एक लोकप्रिय खेलों में शामिल है. भारत ने वर्ष 1928 से 1956 तक ओलंपिक में लगातार 6 बार स्वर्ण पदक जीते हैं. हॉकी के जादूगर के रूप में मेजर ध्यान चंद का सिक्का तो पूरी दुनिया में चला है. इस बार तो सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम हटाकर खेल रत्न पुरस्कार में मेजर ध्यानचंद का नाम जोड़ दिया है. बहरहाल भारतीय खिलाड़ियों ने इस बार के ओलिंपिक में अच्छा प्रदर्शन किया और देश इस समय सेलिब्रेट कर रहा है. बता दें कि हॉकी भारत में एक लोकप्रिय खेलों में शामिल है. भारत ने वर्ष 1928 से 1956 तक ओलंपिक में लगातार 6 बार स्वर्ण पदक जीते हैं. हॉकी के जादूगर के रूप में मेजर ध्यान चंद का सिक्का तो पूरी दुनिया में चला है. इस बार तो सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम हटाकर खेल रत्न पुरस्कार में मेजर ध्यानचंद का नाम जोड़ दिया है. बहरहाल भारतीय खिलाड़ियों ने इस बार के ओलिंपिक में अच्छा प्रदर्शन किया और देश इस समय सेलिब्रेट कर रहा है

शनिवार, 7 अगस्त 2021

व्हाट्सएप स्टेटस

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Mars की मिट्टी इकट्ठा करने में नाकाम रहा NASA का रोवर, लेकिन हाथ आई एक बड़ी सफलता

मंगल (Mars) ग्रह पर करोड़ों साल पहले जीवन होने के संकेत खोजने के नासा के महत्‍वाकांक्षी मिशन के रोवर को इस प्रक्रिया के शुरुआती प्रयास में असफलता हाथ लगी है. रोवर मंगल की सतह पर ड्रिल करने में तो कामयाब रहा लेकिन मिट्टी इकट्ठी नहीं कर सका.वॉशिंगटन: मंगल (Mars) ग्रह पर जीवन के संकेत खोजने के अहम मिशन में जुटे नासा के पर्सिवरेंस (Perseverance) के प्रारंभिक प्रयासों में विफलता हाथ लगी है. दरअसल, नासा पर्सिवरेंस के जरिए मंगल की सतह ( Mars Surface) पर ड्रिल करके मिट्टी (Rock) लानी की कोशिशें कर रहा था, ताकि इससे भविष्‍य के मिशनों के विश्‍लेषण के लिए मदद मिल सके, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने शुक्रवार को रोवर के बगल में एक छोटे से टीले के केंद्र में एक छेद वाली फोटो जारी की हैं. यह छेद रोबोट ने किया है और ऐसा पहली बार है कि कोई रोबोट मंगल की सतह पर छेद करने में सफल रहा है. हालांकि रोवर द्वारा सैंपल लेने और इसे एक ट्यूब में सील करने के पहले प्रयास के बाद पृथ्वी पर भेजे गए डेटा से संकेत मिलता है कि इसमें मिट्टी इकट्ठा नहीं हो पाई है. इसे लेकर नासा (NASA) के साइंस मिशन डायरेक्‍टोरेट के एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर थॉमस जुर्बुचेन ने एक बयान में कहा है, 'हालांकि यह 'होल-इन-वन' नहीं है, जिसकी हमें उम्मीद थी, नया काम करने में हमेशा जोखिम होता है. लेकिन मुझे भरोसा है कि हमारे पास यह काम करने वाली सही टीम है और हम भविष्य की सफलता सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करेंगे.'पूरी प्रक्रिया में लगेंगे 11 दिन ड्रिल करके होल करना सैंपल प्रोसेस का पहला चरण है, उम्‍मीद है कि इस पूरी प्रक्रिया में 11 दिन लगेंगे. इसके जरिए प्राचीन झील के अंदर जीवन के संकेत खोजने का प्रयास किया जा रहा है ताकि यह पता लग सके कि मंगल ग्रह पर करोड़ों साल पहले जीवन था. इसके अलावा इस खोज से वैज्ञानिकों को मंगल ग्रह के भूविज्ञान को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी. बता दें कि इस मिशन ने एक साल पहले फ्लोरिडा से उड़ान भरी थी और एक बड़ी फैमिली कार जितने आकार वाला पर्सिवरेंस 18 फरवरी को जेजेरो क्रेटर में उतरा था. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस गड्ढे में साढ़े अरब साल पहले एक गहरी झील थी, जिसकी स्थितियां जीवन के लिए अनुकूल हो सकती हैं.

शुक्रवार, 25 जून 2021

Battlegrounds Mobile में गेम शुरू होने से पहले मिलने वाली ऑडियो वॉर्निंग को ऐसे करें बंद

Battlegrounds Mobile में गेम शुरू होने से पहले मिलने वाली ऑडियो वॉर्निंग को ऐसे करें बंद Battlegrounds Mobile India (BGMI) को भारत में उपलब्ध हुए लगभग एक हफ्ता हो गया है. Battlegrounds Mobile India के अर्ली वर्जन को यूजर्स के लिए उपलब्ध करवाया गया है. ये गेम गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध है. ओरिजिनल गेम में कुछ चेंज के साथ Battlegrounds Mobile India को उतारा गया है. इसमें एक बदलाव यूजर्स को काफी ज्यादा इरिटेट करता है वो है गेम स्टार्ट होने से पहले ऑडियो वॉर्निंग का आना. यूजर्स जब गेम को ओपन करते हैं तो उनको एक ऑडियो सिमुलेशन वार्निंग दी जाती है. इससे कई प्लेयर्स को काफी गुस्सा भी आता है. इसे किसी तरह बंद करने का ऑप्शन वो सर्च करते हैं. इस बंद करने का ऑप्शन भी कंपनी ने दिया है नए बैटल रॉयल गेम को शुरू करते ही यूजर्स को एक ऑडियो वॉर्निंग दी जाती है. ये वॉर्निंग तब दी जाती है जब आप नए गेम को ओपन करके बाद वेटिंग एरिया में जाते हैं. इसमें यूजर्स को बताया जाता है Battlegrounds Mobile India रियल वर्ल्ड बेस्ड गेम नहीं है. ये एक सिमुलेशन गेम सेट है जिसे वर्चुअल वर्ल्ड में सेट किया गया है. इस ऑडियो वॉर्निंग के साथ एक पॉप-अप भी यूजर को दिया जाता है. पॉप-अप में भी यही बात कही जाती है. इसके अलावा गेम के दौरान थोड़े-थोड़े देर पर ब्रेक लेने के लिए भी कहा जाता है. इसपर ज्यादा समय नहीं बिताने की भी सलाह दी जाती है. कई यूजर्स इस ऑडियो वॉर्निंग को बंद करने का ऑप्शन सर्च करते हैं. एक अच्छी बात है इसें बंद करने का ऑप्शन कंपनी की ओर से दिया गया है. इसके लिए आपको ज्यादा स्टेप्स फॉलो करने की भी जरूरत नहीं है. इसे बंद करने के लिए आपको Battlegrounds Mobile India के सेटिंग में जाना होगा. सेटिंग में आपको गेम के Basics सेटिंग्स मेन्यू में जाना होगा. इसमें आप स्क्रॉल करके सबसे नीचे के हिस्से पर जाएं. यहां पर आपको Spawn Island Broadcast को ऑप्शन मिलेगा. आपको इसे टॉगल ऑफ कर देना है. इसे ऑफ करने के बाद आपको ऑडियो वार्निंग नहीं सुनाई दे आपको बता दें कि इस ऑप्शन को डिसेबल करने का बाद भी आपको गेम में आने वाला पॉप नहीं बंद होगा. यानी इससे सिर्फ ऑडियो वॉर्निंग को ही गेम से हटाया जा सकता है. इसके बाद आपको अनाउंसमेंट नहीं सुनाई देगा. पॉपअप के लिए आप ok बटन पर क्लिक करके गेम खेलने का आनंद ले सकते हैं. दोस्तो जनकारी अच्छी लगी तो अपने दोस्तो को शेयर करे धन्यवाद https://sanwlaram2.blogspot.com sanwlaramchoudhary278@gmail.com

रविवार, 24 जनवरी 2021

उसने कहा था जबरदस्त कहानी रोमांटिक कहानी

लेखक-परिचय पं. चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' (1883 ई.-1922 ई.) हिन्दी कहानी के उल्लेखनीय हस्ताक्षर हैं। उनका जन्म जयपुर में हुआ। वे बचपन से ही साहित्यिक प्रतिभा संपन्न थे इनकी प्रतिभा का क्षेत्र खगोल, विज्ञान, ज्योतिष, धर्म, भाषा-विज्ञान, इतिहास, शोध एवं साहित्य तक विस्तृत था। उसने कहा था हिन्दी की प्रसिद्ध कहानी है, जिसका प्रकाशन 1915 ई. में हुआ था। इसके अतिरिक्त उन्होंने 'सुखमय जीवन' और 'बुद्धू का काँटा आदि कहानियाँ भी लिखीं। 'कछुआ धर्म', 'मारेसि मोहि कुठांव' आदि उनकी निबंध कला के प्रतिमान हैं। उन्होंने मासिक पत्र 'समालोचक का संपादन किया एवं वे नागरी प्रचारिणी सभा काशी के संपादक मंडल में भी रहे। 39 वर्ष की अल्पायु में उनका निधन हो गया। पाठ-परिचय उसने कहा था प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918ई) की पृष्ठभूमि पर लिखी गई एक मार्मिक कहानी है, जिसका कथानक प्रेम, त्याग और कर्तव्यनिष्ठा को केन्द्र में रखकर बुना गया है। अमृतसर के बाजार का दृश्य, बालक-बालिका का बालसुलभ निश्छल प्रेम, महायुद्ध का वातावरण और लहनासिंह के आत्मोत्सर्ग आदि के वर्णन में गहरा मनोवैज्ञानिक पुट है। यह कहानी प्रारंभिक चहल-पहल से लेकर प्रेम और कर्तव्य का विकट पथ पार करती हुई मृत्यु-शैया पर समाप्त होती है। यह उत्सर्ग प्रेम-वेदना जनित नहीं, बल्कि कर्त्तव्य की प्रसन्नता है। आंचलिक शब्दों के साथ यथार्थ वर्णन व उत्कट भाव-व्यंजना से यह कहानी हिन्दी साहित्य की विशिष्ट धरोहर है। बड़े-बड़े शहरों के इक्के-गाड़ीवालों की ज़बान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है, और कान पक गए हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बोली का मरहम लगावें। जब बड़े-बड़े शहरों की चौड़ी सड़कों पर घोड़े की पीठ चाबुक से धुनते हुए.... कभी राह चलते पैदलों की आँखों के न होने पर तरस खाते हैं, कभी उनके पैरों की अंगुलियों के पोरे को चींथकर अपने- ही को सताया हुआ बताते हैं, और संसार-भर की ग्लानि, निराशा और क्षोभ के अवतार बने, नाक की सीध में चले जाते हैं, तब अमृतसर में उनकी बिरादरी वाले तंग चक्करदार गलियों में, हर-एक लड्डी वाले के लिए ठहर कर सब्र का समुद्र उमड़ा कर, चलो खालसा जी! हटो भाई जी! ठहरना भाई जी आने दो लाला जी! हटो बा'छा!... कहते हुए सफेद फेटों, खच्चरों और बतखों, गन्ने और खोमचे और भारे वालों के जंगल में से राह खेते हैं। क्या मजाल है कि जी और साहब बिना सुने किसी को हटना पड़े। यह बात नहीं कि उनकी जीभ चलती ही नहीं, चलती है. पर मीठी छुरी की तरह महीन मार करती हुई यदि कोई बुढ़िया बार-बार चितौनी देने पर भी लीक से नहीं हटती, तो उनकी बचनावली के ये नमूने हैं हट जा जीणे जोगिए; हट जा, करमाँवालिए; हट जा पुत्तों प्यारिए: बच जा लम्बी उमरौं वालिए। समष्टि में इनके अर्थ हैं कि तू जीने योग्य है, तू भाग्यशाली है, पुत्रों को प्यारी है, लम्बी उमर तेरे सामने है, तू क्यों मेरे पहियों के नीचे आना चाहती है?बच जा। ऐसे बम्बूकार्टवालों के बीच में होकर एक लड़का और एक लड़की चौक की एक दुकान पर आ मिले। उसके बालों और इसके ढीले सुथने से जान पड़ता था कि दोनों सिख हैं। वह अपने मामा के केश धोने के लिए दही लेने आया था. और यह रसोई के लिए बड़ियोँ दुकानदार एक परदेसी से गुँथ रहा था, जो सेर-भर गीले पापड़ों की गड्डी को गिने बिना हटता न था। तेरे घर कहाँ है? मगरे में, और तेरे? माँझे में, यहाँ कहाँ रहती है? 'अतरसिंह की बैठक में, वे मेरे मामा होते हैं। मैं भी मामा के यहाँ आया हूँ, उनका घर गुरु बाजार में हैं। इतने में दुकानदार निबटा, और इनका सौदा देने लगा सौदा लेकर दोनों साथ-साथ चले। कुछ दूर जा कर लड़के ने मुस्कराकर पूछा- 'तेरी कुड़माई हो गई?' इस पर लड़की कुछ आँख चढ़ा कर धत् कह कर दौड़ गई और लड़का मुँह देखता रह गया। दूसरे-तीसरे दिन सब्जीवाले के यहाँ या दूधवाले के यहाँ, अकस्मात् दोनों मिल जाते। महीना-भर यही हाल रहा। दो-तीन बार लड़के ने फिर पूछा- तेरी कुड़माई हो गई? और उत्तर में वही घत मिला। एक दिन जब फिर लड़के ने वैसे ही हँसी में चिढ़ाने के लिए पूछा तो लड़की, लड़के की संभावना के विरुद्ध बोली- हाँ, हो गई। कब? कल; देखते नहीं, यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू। भाग गई। लड़के ने घर की राह ली। रास्ते में एक लड़के को मोरी में ढकेल दिया, एक छाबड़ी वाले की दिन-भर की कमाई खोई, एक कुत्ते के पत्थर मारा और एक गोभीवाले के ठेले में दूध उड़ेल दिया। सामने नहाकर आती हुई किसी वैष्णवी से टकरा कर अन्चे की उपाधि पाई। तब कहीं घर पहुँचा। राम-राम, यह भी कोई लड़ाई है। दिन-रात खन्दकों में बैठे हड्डियाँ अकड़ गई। लुधियाने से दस गुना जाड़ा और मेह और बर्फ ऊपर से। पिंडलियों तक कीचड़ में धैंसे हुए हैं। जमीन कहीं दिखती नहीं - घंटे-दो-घंटे में कान के परदे फाडने वाले धमाके के साथ सारी खन्दक हिल जाती है और सौ-सौ गज घरती उछल पड़ती है। इस गैबी गोले से बचे तो कोई लड़े। नगरकोट का जलजला सुना था, यहाँ दिन में पच्चीस जलजले होते हैं। जो कहीं खन्दक से बाहर साफा या कुहनी निकल गई, तो चटाक से गोली लगती है। न मालूम बेईमान मिट्टी में लेटे हुए हैं या घास की पत्तियों में छिपे रहते हैं। लहनासिंह, और तीन दिन हैं। चार तो खन्दक में बिता ही दिए। परसों रिलीफ आ जाएगी और फिर सात दिन की छुट्टी। अपने हाथों झटका करेंगे और पेट-भर खाकर सो रहेंगे उसी फिरंगी मेम के बाग में - मखमल का-सा हरा घास है। फल और दूध की वर्षा कर देती है लाख कहते हैं, दाम नहीं लेती। कहती है, तुम राजा हो, मेरे मुल्क को बचाने आए हो। चार दिन तक पलक नहीं झँपी। बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही। मुझे तो संगीन चढ़ा कर मार्च का हुक्म मिल जाय। फिर सात जर्मनों को अकेला मार कर न लौटे, तो मुझे दरबार साहब की देहली पर मत्था टेकना नसीब न हो। पाजी कहीं के, कलों के घोड़े - संगीन देखते ही मुँह फाड़ देते हैं, और पैर पकड़ने लगते हैं। यों अंधेरे में तीस-तीस मन का गोला फेंकते हैं। उस दिन धावा किया चार मील तक एक जर्मन नहीं छोड़ा था। पीछे जनरल ने हट जाने का कमान दिया, नहीं तो..' नहीं तो सीधे बर्लिन पहुँच जाते! क्यों? सूबेदार हजारासिंह ने मुस्कराकर कहा, 'लड़ाई के मामले जमादार या नायक के चलाये नहीं चलते। बड़े अफसर दूर की सोचते हैं। तीन सौ मील का सामना है। एक तरफ बढ़ गए तो क्या होगा? 'सूबेदारजी, सच है, लहनासिंह बोला, 'पर करें क्या? हड्डियों-हड्डियों में तो जाड़ा धेँस गया। सूर्य निकलता नहीं और खाई में दोनों तरफ से चम्बे की बावलियों के से सोते झर रहे हैं। एक घावा हो जाय, तो गरमी आ जाय। उदमी, उठ, सिगड़ी में कोले डाल । वजीरा, तुम चार जने बाल्टियाँ लेकर खाई का पानी बाहर फेंको। महासिंह, शाम हो गई है, खाई के दरवाजे का पहरा बदल दे। यह कहते हुए सूबेदार सारी खन्दक में चक्कर लगाने लगे। वज़ीरासिंह पलटन का विदूषक था। बाल्टी में गँदला पानी भर कर खाई के बाहर फेंकता हुआ बोला, "मैं पाधा बन गया हूँ। करो जर्मनी के बादशाह का तर्पण!" इस पर सब खिलखिला पड़े और उदासी के बादल फट गए। लहनासिंह ने दूसरी बाल्टी भर कर उसके हाथ में देकर कहा- 'अपनी बाड़ी के खरबूजों में पानी दो। ऐसा खाद का पानी पंजाब-भर में नहीं मिलेगा। के हां, देश क्या है, स्वर्ग है। मैं तो लड़ाई के बाद सरकार से दस घुमा जमीन यहाँ माँग लूँगा और फलों बूटे लगाऊँगा। लाडी होरां को भी यहाँ बुला लोगे? या वही दूध पिलानेवाली फरंगी मेम.. चुप कर । यहाँ वालों को शरम नहीं। देश-देश की चाल है। आज तक मैं उसे समझा न सका कि सिख तम्बाखू नहीं पीते। वह सिगरेट देने में हठ करती है, ओठों में लगाना चाहती है, और मैं पीछे हटता हूँ तो समझती है कि राजा बुरा मान गया, अब मेरे मुल्क के लिए लड़ेगा नहीं। अच्छा, अब बोधासिंह कैसा है? अच्छा है। जैसे मैं जानता ही न होऊँ ! रात-भर तुम अपने कम्बल उसे उठ़ाते हो और आप सिगड़ी के सहारे गुजर करते हो। उसके पहरे पर आप पहरा दे आते हो। अपने सूखे लकड़ी के तख्तों पर उसे सुलाते हो, आप कीचड़ में पड़े रहते हो। कहीं तुम न माँदे पड़ जाना । जाड़ा क्या है, मौत है, और 'निमोनिया से मरनेवालों को मुरब्बे नहीं मिला करते। मेरा डर मत करो। मैं तो बुलेल की खडु के किनारे मरूँगा। भाई कीरतसिंह की गोदी पर मेरा सिर होगा और मेरे हाथ के लगाए हुए आँगन के आम के पेड़ की छाया होगी। (तीन) दो पहर रात गई है। अन्धेरा है सन्नाटा छाया हुआ है बोधासिंह खाली बिस्कुटों के तीन टिनों पर अपने दोनों कम्बल बिछा कर और लहनासिंह के दो कम्बल और एक बरकोट ओढ़ कर सो रहा है। लहनासिंह पहरे पर खड़ा हुआ है। एक आँख खाई के मुँह पर है और एक बोधासिंह के दुबले शरीर पर। बोधासिंह कराहा। 'क्यों बोधा भाई, क्या है? पानी पिला दो। लहनासिंह ने कटोरा उसके मुँह से लगा कर पूछा- कहो कैसे हो?' पानी पी कर बोधा बोला-कॅपी (कँपकँपी) छूट रही है। रोम-रोम में तार दौड़ रहे हैं। दाँत बज रहे हैं। अच्छा, मेरी जरसी पहन लो!' और तुम? मेरे पास सिगड़ी है और मुझे गर्मी लगती है। पसीना आ रहा है। ना, मैं नहीं पहनता। चार दिन से तुम मेरे लिए हां, याद आई। मेरे पास दूसरी गरम जरसी है आज सवेरे ही आई है। विलायत से बुन-बुनकर भेज रही हैं मेमें, गुरु उनका भला करें। यों कह कर लहना अपना कोट उतार कर जरसी उतारने लगा। सच कहते हो? और नहीं झूठ?' यों कह कर नाहीं करते बोधा को उसने जबरदस्ती जरसी पहना दी और आप खाकी कोट और जीन का कुरता भर पहनकर पहरे पर आ खड़ा हुआ। मेम की जरसी की कथा केवल कथा थी। आधा घण्टा बीता। इतने में खाई के मुँह से आवाज आई, 'सूबेदार हजारासिंह! कौन, लपटन साहब? हुक्म हुजूर' कह कर सूबेदार तन कर फौजी सलाम करके सामने हुआ। "देखो, इसी समय धावा करना होगा मील भर की दूरी पर पूरब के कोने में एक जर्मन खाई है। उसमें पचास से जियादह जर्मन नहीं हैं। इन पेड़ों के नीचे-नीचे दो खेत काट कर रास्ता है। तीन-चार घुमाव हैं। जहाँ मोड़ है वहाँ पन्द्रह जवान खड़े कर आया हूँ। तुम यहाँ दस आदमी छोड़ कर सब को साथ ले उनसे जा मिलो। खन्दक छीन कर वहीं, जब तक दूसरा हुक्म न मिले, डटे रहो। हम यहाँ रहेगा" जो हुकुम। चुपचाप सब तैयार हो गए। बोधा भी कम्बल उतार कर चलने लगा। तब लहनासिंह ने उसे रोका। लहनासिंह आगे हुआ तो बोधा की ओर इशारा किया। लहनासिंह समझ कर चुप हो गया। पीछे दस आदमी कौन रहें. इस पर बड़ी हुज्जत हुई। कोई रहना नहीं चाहता था। समझा-बुझाकर सूबेदार ने मार्च किया। लपटन साहब लहना की सिगड़ी के पास मुँह फेर कर खड़े हो गए और जेब से सिगरेट निकाल कर सुलगाने लगे। दस मिनट बाद उन्होंने लहना की ओर हाथ बढ़ा कर कहा- लो तुम भी पियो। आँख मारते-करते लहनासिंह सब समझ गया। मुँह का भाव छिपा कर बोला- लाओ साहब।' हाथ आगे करते ही उसने सिगड़ी के उजाले में साहब का मुँह देखा। बाल देखे तब उसका माथा ठनका। लपटन साहब के पट्टियों वाले बाल एक दिन में ही कहाँ उड़ गए और उनकी जगह कैदियों के से कटे बाल कहाँ से आ गए? शायद साहब शराब पिए हुए हैं और उन्हें बाल कटवाने का मौका मिल गया है?लहनासिंह ने जाँचना चाहा- लपटन साहब पाँच वर्ष से उसकी रेजिमेंट में थे। क्यों साहब, हम लोग हिन्दुस्तान कब जाएँगे?' लड़ाई खत्म होने पर। क्यों, क्या यह देश पसन्द नही? नहीं साहब, शिकार के वे मजे यहाँ कहाँ?याद है, पारसाल नकली लड़ाई के पीछे हम आप जगाधारी जिले में शिकार करने गए थे - हाँ- हां - वहीं जब आप खोते पर सवार थे और आपका खानसामा अब्दुल्ला रास्ते के एक मन्दिर में जल चढ़ाने को रह गया था?बेशक, पाजी कहीं का - सामने से वह नीलगाय निकली कि ऐसी बड़ी मैंने कभी न देखी थीं। और आपकी एक गोली कन्धे में लगी और पुढे से निकली। ऐसे अफसर के साथ शिकार खेलने में मजा है। क्यों साहब, शिमले से तैयार होकर उस नील गाय का सिर आ गया था न! आपने कहा था कि रेजिमेंट की मेस में लगाएँगे। हाँ, पर मैंने वह विलायत भेज दिया - ऐसे बड़े-बड़े सींग! दो-दो फुट के तो होंगे? हाँ, लहनासिंह, दो फुट चार इंच के थे तुमने सिगरेट नहीं पिया? पीता हूँ साहब, दियासलाई ले आता हूँ- कह कर लहनासिंह खन्दक में घुसा। अब उसे सन्देह नहीं रहा था। उसने झटपट निश्चय कर लिया कि क्या करना चाहिए। अंधेरे में किसी सोने वाले से वह टकराया। कौन?वज़ीरासिंह? हो, क्यों लहना?क्या कयामत आ गई?जरा तो आँख लगने दी होती? होश में आओ। कयामत आई और लपटन साहब की वर्दी पहन कर आई है। क्या? लपटन साहब या तो मारे गए हैं या कैद हो गए हैं। उनकी वर्दी पहन कर यह कोई जर्मन आया है, सूबेदार ने इसका मुँह नहीं देखा। मैंने देखा है और बातें की हैं।... साफ उर्दू बोलता है, पर किताबी और मुझे पीने को सिगरेट दिया है। उर्दू 'तो अब!' 'अब मारे गए। धोखा है। सूबेदार होरां, कीचड़ में चक्कर काटते फिरेंगे और यहाँ खाई पर धावा होगा। उठो, एक काम करो। पलटन के पैरों के निशान देखते-देखते दौड़ जाओ। अभी बहुत दूर न गए होंगे। सूबेदार से कहो एकदम लौट आवें। खन्दक की बात झूठ है। चले जाओ, खन्दक के पीछे से निकल जाओ। पत्ता तक न खड़के। देर मत करो, हुकुम तो यह है कि यहीं ऐसी- तैसी हुकुम की! मेरा हुकुम.. जमादार लहनासिंह जो इस वक्त यहाँ सब से बड़ा अफसर है, उसका हुकुम है। मैं लपटन साहब की खबर लेता हूँ। पर यहाँ तो तुम आठ ही हो। 'आठ नहीं, दस लाख । एक-एक अकालिया सिख सवा लाख के बराबर होता है। चले जाओ। लौट कर खाई के मुहाने पर लहनासिंह दीवार से चिपक गया उसने देखा कि लपटन साहब ने जेब से बेल के बराबर के तीन गोले निकाले। तीनों को जगह-जगह खन्दक की दीवारों में घुसेड़ दिया और तीनों में एक तार-सा बाँध दिया। तार के आगे सूत की एक गुत्थी थी, जिसे सिगड़ी के पास रखा। बाहर की तरफ जाकर एक दियासलाई जला कर गुत्थी पर रखने.. बिजली की तरह दोनों हाथों से उल्टी बन्दूक को उठा कर लहनासिंह ने साहब की कुहनी पर तान कर दे मारा। धमाके के साथ साहब के हाथ से दियासलाई गिर पड़ी। लहनासिंह ने एक कुन्दा साहब की गर्दन पर मारा और साहब 'आह! मीन गौट कहते हुए चित्त हो गए। लहनासिंह ने तीनों गोले बीन कर खन्दक के बाहर फेंके और साहब को घसीट कर सिगड़ी के पास लिटाया। जेबों की तलाशी ली। तीन-चार लिफाफे और एक डायरी निकाल कर उन्हें अपनी जेब के हवाले किया। साहब की मूर्छा हटी। लहनासिंह हँस कर बोला- 'क्यों लपटन साहब?मिजाज कैसा है?आज मैंने बहुत बातें सीखीं। यह सीखा कि सिख सिगरेट पीते हैं। यह सीखा कि जगाधरी के जिले में नील गायें होती हैं और उनके दो फुट चार इंच के सींग होते हैं। यह सीखा कि मुसलमान खानसामा मंदिरों में जल चढ़ाते हैं। और लपटन साहब खोते पर चढ़ते हैं। पर यह तो कहो, ऐसी साफ उर्दू कहाँ से सीख आए?हमारे लपटन साहब तो बिना 'डेम के पाँच लफ्ज भी नहीं बोला करते थे। लहना ने पतलून के जेबों की तलाशी नहीं ली थी। साहब ने मानो जाड़े से बचने के लिए. दोनों हाथ जेवों में डाले। लहनासिंह कहता गया, चालाक तो बड़े हो पर माँझे का लहना इतने बरस लपटन साहब के साथ रहा है। उसे चकमा देने के लिए चार आँखें चाहिए। तीन महीने हुए, एक तुरकी मौलवी मेरे गाँव आया था। औरतों को बच्चे होने के ताबीज बाँटता था और बच्चों को दवाई देता था। चौधरी के बड के नीचे मंजा विछा कर हुक्का पीता रहता था और कहता था कि जर्मनीवाले बड़े पंडित हैं वेद पढ़-पढ़ कर उसमें से विमान चलाने की विद्या जान गए हैं। गौ को नहीं मारते । हिन्दुस्तान में आ जाएँगे तो गोहत्या बन्द कर देंगे मंडी, के बनियों को बहकाता कि डाकखाने से रुपया निकाल लो। सरकार का राज्य जानेवाला है। डाक-याबू पोल्हूराम भी डर गया था। मैंने मुल्ला जी की दाढ़ी मूंड दी थी और गाँव से बाहर निकाल कर कहा था कि जो मेरे गाँव में अब पैर रक्खा तो- साहब की जेब में से पिस्तौल चला और लहना की जाँघ में गोली लगी इधर लहना की हैनरी मार्टिनी के दो फायरों ने साहब की कपाल-क्रिया कर दी। धड़ाका सुन कर सब दौड़े आए। बोधा चिल्लाया- क्या है? लहनासिंह ने उसे यह कह कर सुला दिया कि एक हड़का हुआ कुत्ता आया था, मार दिया औरों से सब हाल कह दिया। सब बन्दूकें लेकर तैयार हो गए। लहना ने साफा फाड़ कर घाव के दोनों तरफ पट्टियाँ कस कर बाँधी। घाव माँस में ही था। पट्टियों के कसने से लहू निकलना बन्द हो गया। इतने में सत्तर जर्मन चिल्लाकर खाई में घुस पड़े। सिक्खों की बन्दूकों की बाढ़ ने पहले धावे को रोका। दूसरे को रोका । पर यहाँ थे आठ (लहनासिंह तक-तक कर मार रहा था - वह खड़ा था, और लेटे हुए थे) और वे सत्तर। अपने मुर्दा भाइयों के शरीर पर चढ़ कर जर्मन आगे घुसे आते थे। थोड़े मिनटों में वे- अचानक आवाज आई "वाह गुरु जी दी फतह! वाह गुरु जी दा खालसा!!" और धड़ाधड़ बन्दूकों के फायर जर्मनों की पीठ पर पड़ने लगे। ऐन मौके पर जर्मन दो चक्की के पाटों के बीच में आ गए। पीछे से सूबेदार हजारासिंह के जवान आग बरसाते थे और सामने लहनासिंह के साथियों के संगीन चल रहे थे। पास आने पर पीछे वालों ने भी संगीन पिरोना शुरू कर दिया। एक किलकारी और - 'अकाल सिक्खों दी फौज आई!' वाह गुरु जी दी फतह! वाह गुरु जी दा खालसा!! सत श्री अकालपुरुष!!!" और लड़ाई खत्म हो गई। तिरेसठ जर्मन या तो खेत रहे थे या कराह रहे थे। सिक्खों में पन्द्रह के प्राण गए। सूबेदार के दाहिने कन्धे में से गोली आरपार निकल गई। लहनासिंह की पसली में एक गोली लगी। उसने घाव को खन्दक की गीली मिट्टी से पूर लिया और बाकी का साफा कस कर कमरबन्द की तरह लपेट लिया। किसी को खबर न हुई कि लहना को दूसरा घाव - भारी घाव लगा है। लड़ाई के समय चाँद निकल आया था, ऐसा चाँद, जिसके प्रकाश से संस्कृत कवियों का दिया हुआ क्षयी' नाम सार्थक होता है और हवा ऐसी चल रही थी जैसी बाणभट्ट की भाषा में दन्तवीणोपदेशाचार्य कहलाती। वजीरासिंह कह रहा था कि कैसे मन-मन भर फ्रांस की भूमि मेरे बूटों से चिपक रही थी, जब मैं दौड़ा-दौड़ा सूबेदार के पीछे गया था। सूबेदार लहनासिंह से सारा हाल सुन और कागजात पाकर वे उसकी तुरत-बुद्धि को सराह रहे थे और कह रहे थे कि तू न होता तो आज सब मारे जाते। इस लड़ाई की आवाज तीन मील दाहिने ओर की खाई वालों ने सुन ली थी। उन्होंने पीछे टेलीफोन कर दिया था। वहीं से झटपट दो डाक्टर और दो बीमार ढोने की गाड़ियाँ चलीं, जो कोई डेढ़ घण्टे के अन्दर-अन्दर आ पहुँची। फील्ड अस्पताल नजदीक था सुबह होते-होते वहाँ पहुँच जाएँगे, इसलिए मामूली पट्टी बोधकर एक गाड़ी में घायल लिटाए गए और दूसरी में लाशें रखी गई सूबेदार ने लहनासिंह की जाँघ में पट्टी बैंधवानी चाही पर उसने यह कह कर टाल दिया कि थोड़ा घाव है, सवेरे देखा जायेगा। बोधासिंह ज्वर में बर्रा रहा था। वह गाड़ी में लिटाया गया। लहना को छोड़ कर सूबेदार जाते नहीं थे। यह देख लहना ने कहा- तुम्हें बोधा की कसम है और सूबेदारनी जी की सौगन्ध है, जो इस गाड़ी में न चले जाओ। और तुम? मेरे लिए वहाँ पहुँचकर गाड़ी भेज देना, और जर्मन मुरदों के लिए भी तो गाड़ियाँ आती होंगी। हाल बुरा नहीं है। देखते नहीं, मैं खड़ा हूँ?वजीरासिंह मेरे पास तो है ही। अच्छा, पर बोधा गाड़ी पर लेट गया?भला! आप भी चढ़ जाओ। सुनिये तो, सूबेदारनी होरों को चिट्ठी लिखो तो मेरा मत्था टेकना लिख देना। और जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उसने कहा था वह मैंने कर दिया। गाड़ियाँ चल पड़ी थीं। सूबेदार ने चढ़ते-चढ़ते लहना का हाथ पकड़ कर कहा, 'तैने मेरे और बोघा के प्राण बचाये हैं। लिखना कैसा?साथ ही घर चलेंगे अपनी सूबेदारनी को तू ही कह देना उसने क्या कहा था? अब आप गाड़ी पर चढ़ जाओ। मैंने जो कहा, वह लिख देना, और कह भी देना। गाड़ी के जाते लहना लेट गया। वजीरा पानी पिला दे और मेरा कमरबन्द खोल दे। तर हो रहा है। (पाँच) मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है जन्म-भर की घटनाएँ एक-एक करके सामने आती हैं। सारे दृश्यों के रंग साफ होते हैं। समय की धुन्ध बिल्कुल उन पर से हट जाती है। X X X लहनासिंह बारह वर्ष का है। अमृतसर में मामा के यहाँ आया हुआ है। दहीवाले के यहाँ, सब्जीवाले के यहाँ, हर कहीं, उसे एक आठ वर्ष की लड़की मिल जाती है। जब वह पूछता है, 'तेरी कुड़माई हो गई? तब धत्' कह कर वह भाग जाती है। एक दिन उसने वैसे ही पूछा तो उसने कहा, हाँ, कल हो गई, देखते नहीं यह रेशम के फूलोंवाला सालू? सुनते ही लहनासिंह को दुःख हुआ। क्रोध हुआ। क्यों हुआ? 'वजीरासिंह, पानी पिला दे। x पच्चीस वर्ष बीत गए। अब लहनासिंह नं 7ा राइफल्स में जमादार हो गया है। उस आठ वर्ष की कन्या का ध्यान ही न रहा। न-मालूम वह कभी मिली थी, या नहीं। सात दिन की छुट्टी लेकर जमीन के मुकद्दमें की पैरवी करने वह अपने घर गया। वहाँ रेजिमेंट के अफसर की चिट्ठी मिली कि फौज लाम पर जाती है, फौरन चले आओ। साथ ही सूबेदार हजारासिंह की चिट्ठी मिली कि मैं और बोधासिंह भी लाम पर जाते हैं। लौटते हुए हमारे घर होते जाना। साथ ही चलेंगे सूबेदार का गाँव रास्ते में पड़ता था और सूबेदार उसे बहुत चाहता था। लहनासिंह सूबेदार के यहाँ पहुँचा। जब चलने लगे, तब सूबेदार बेड़े में से निकल कर आया। बोला- 'लहना, सूबेदारनी तुमको जानती हैं। बुलाती है। जा मिल आ। लहनासिंह भीतर पहुँचा । सूबेदारनी मुझे जानती हैं?कब से?रेजिमेंट के क्वार्टरों में तो कभी सूबेदार के घर के लोग रहे नहीं । दरवाजे पर जा कर 'मत्था टेकना कहा। असीस सुनी। लहनासिंह चुप। मुझे पहचाना? नहीं। तेरी कुड़माई हो गई ?यत् -कल हो गई-देखते नहीं रेशमी बूटोंवाला सालू -अमृतसर में_r भावों की टकराहट से मूर्छा खुली। करवट बदली। पसली का घाव बह निकला। 'वजीरा, पानी पिला।- उसने कहा था।' x x स्वप्न चल रहा है। सूबेदारनी कह रही है- मैंने तेरे को आते ही पहचान लिया। एक काम कहती हूँ। मेरे तो भाग फूट गए। सरकार ने बहादुरी का खिताब दिया है, लायलपुर में जमीन दी है, आज नमक-हलाली का मौका आया है, पर सरकार ने हम तीमियों की एक घघरिया पलटन क्यों न बना दी, जो मैं भी सूबेदारजी के साथ चली जाती?एक बेटा है। फौज में भर्ती हुए उसे एक ही बरस हुआ। उसके पीछे चार और हुए. पर चले गए थे, और मुझे उठा कर दुकान के तख्ते पर खड़ा कर दिया था। ऐसे ही इन दोनों को बचाना। यह मेरी भिक्षा है। तुम्हारे आगे आँचल पसारती हूँ। एक भी नहीं जिया। 'सूबेदारनी रोने लगी। अब दोनों जाते हैं। मेरे भाग! तुम्हें याद है, एक दिन ताँगेवाले का घोड़ा दहीवाले की दुकान के पास बिगड़ गया था । तुमने उस दिन मेरे प्राण बचाये थे, आप घोड़े की लातों में रोती-रोती सूबेदारनी ओवरी में चली गई। लहना भी आँसू पोंछता हुआ बाहर आया। "वजीरासिंह, पानी पिला" - उसने कहा था । x X लहना का सिर अपनी गोदी में रखे वज़ीरासिंह बैठा है। जब माँगता है, तब पानी पिला देता है। आध घण्टे तक लहना चुप रहा, फिर बोला- कौन! कीरतसिंह?' वज़ीरा ने कुछ समझकर कहा- हाँ। 'भइया, मुझे और ऊँचा कर ले। अपने पट्ट पर मेरा सिर रख ले। वज़ीरा ने वैसे ही किया। हाँ, अब ठीक है। पानी पिला दे। बस, अब के हाड़ में यह आम खूब फलेगा। चाचा-भतीजा दोनों यहीं बैठ कर आम खाना। जितना बड़ा तेरा भतीजा है, उतना ही यह आम है। जिस महीने उसका जन्म हुआ था. उसी महीने में मैंने इसे लगाया था। वज़ीरासिंह के आँसू टप-टप टपक रहे थे। x x कुछ दिन पीछे लोगों ने अखबारों में पढ़ा फ्रान्स और बेलजियम- 68 वीं सूची- मैदान में घावों से मरा- नं 77 सिख राइफल्स जमादार लहनासिंह। (9)

शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

3.4 धर्म और राजनीति (Religion & Politics)

34 धर्म और राजनीति (Religion & Politics) प्राचीन समय से "धर्म और राजनीति" अथवा "राजनीति

और धर्म" में गहरा संबंध रहा हैं। जब-जब धर्म व राजनीति का नकारात्मक संसर्ग हुआ हैं, तब-तब राजनीति ने धर्म का दुरूपयोग किया हैं। बट्ट्रेड रसेल और ई.एम. फोस्टर जैसे शान्तिवादी विद्वानों ने धर्म की इस बात के लिए आलोचना की है कि धर्म के नाम पर शुद्ध राजनीति करने से विश्व में हमेशा खून-खराबा हुआ है जो आज भी जारी है। आज भी सभी धर्मों में धर्मान्ध कट्टरपंथी मरने मारने को तैयार है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद विश्व में कई ऐसे शक्ति समूह व संवर्ग उत्पन्न हुए है। प्रारम्भ में धर्म, शासन के लिए सुव्यवस्था और सुनीति का संस्थापक बना लेकिन बाद में अनेक शासकों ने धर्म विशेष को अपना राजधर्म घोषित किया और अपने अनुयायिओं की संख्या बढ़ाने के लिए धर्म की आड़ में युद्ध किए। इस्लाम, इसाई, यहुदी और हिन्दु धर्म से पृथक् हुए कुछ मतों ने शक्ति की आड़ में अपनी मान्यता, अपने धर्म के विस्तार का कार्य किया । धर्म की आड़ में साम्राज्यों का विस्तार किया गया और अनेक देशों में परस्पर युद्ध हुए। विगत लगभग दो हजार वर्ष का इतिहास धर्म के नाम पर अनेक बार रक्त रंजित हुआ। बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में धर्म आधारित युद्धों पर कुछ हद तक विराम अवश्य लगा किन्तु धार्मिक श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए धर्म की आड़ में





आतंकी गतिविधियों की बाढ़ आ गई है। आतंकवादियों ने दूसरे धर्मानुयायियों को अकारण शिकार बनाना आरम्भ कर दिया है। भारत इसका सबसे बड़ा शिकार है। राम मनोहर लोहिया के अनुसार "धर्म और राजनीति के

दायरे अलग-अलग हैं परन्तु दोनों की जड़े एक हैं। धर्म दीर्घकालीन राजनीति हैं, जबकि राजनीति अल्पकालीन धर्म हैं। धर्म का काम भलाई करना और उसकी स्तुति करना हैं, जबकि राजनीति का कार्य बुराई से लड़ना और बुराई की निन्दा करना हैं। समस्या तब उत्पन्न होती हैं जब राजनीति बुराई से लड़ने के स्थान पर केवल निन्दा करती हैं, तो वह कलही हो जाती हैं, इसलिये आवश्यक हैं कि धर्म और राजनीति के मूल तत्वों को समझा जाये। धर्म और राजनीति का विवेकपूर्ण मिलन मानवीय कल्याण में साधक होता हैं, जबकि इन दोनों का अविवेकपूर्ण मिलन दोनों को भ्रष्ट कर देता हैं, जो मानवता के लिए अनिष्टकारी होता हैं। इस अविवेकपूर्ण मिलन से साम्प्रदायिक कट्टरता उत्पन्न होती हैं। धर्म और राजनीति को पृथक् करने का सबसे बड़ा उद्देश्य यही हैं कि दोनों अपने-अपने मर्यादित क्षेत्र में सक्रिय रहें किन्तु दोनों एक दूसरे का अपनी निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिये दुरूपयोग न करें। वस्तुतः धर्म और राजनीति में सदैव मर्यादित सम्पर्क बना रहना चाहिए ताकि दोनों एक दूसरे का परस्पर सकारात्मक सहयोग कर सकें। नीतिगत धर्म व धर्मप्रद राजनीति का अनुगमन विश्व शान्ति की स्थापना के लिये अपरिहार्य है। राजनीति का धर्म को और धर्म का राजनीति को नकारात्मक रूप से प्रभावित करना मानवता के लिए दुर्भाग्य पूर्ण है। इससे धार्मिक प्रतिक्रियावाद, कट्टरपन, साम्प्रदायिकता व गुलामी की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है, जो स्वतन्त्रता व समानता जैसे महत्त्वपूर्ण मूल्यों को प्रभावित करती है। आज विश्व में अधिकांश लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में धर्म निरपेक्षता के सिद्धान्त को अपनाया गया है।






स्वामी विवेकानन्द के अनुसार "आडम्बर आच्छादित व हठधर्मितापूर्ण धर्म मनुष्य को विभाजित करता है, जबकि अनुभव से विकसित धर्म मनुष्य को परस्पर जोड़ने का कार्य करता है।" उन्होंने यह भी कहा है कि "जो दूसरों के लिये जीते हैं, वे ही सच में जीते हैं, शेष तो जीते हुए भी मरे जैसे है। उनके अनुसार व्यक्ति और समाज में परस्पर अनुकूलता एकात्मकता का भाव व मानवतावादी दृष्टिकोण धर्म के अनुशीलन से ही संभव है।

नीरज चोपड़ा ने गर्लफ्रेंड और शादी के सवाल पर दिया ये जवाब

नीरज चोपड़ा ने गर्लफ्रेंड और शादी के सवाल पर दिया ये जवाबनीरज चोपड़ा की उम्र 23 साल है और फिलहाल उन्हें सबसे एलिजबल बैचल...